Holi Nibandh — मेरा प्रिय त्योहार होली पर निबंध | Holi Essay

मेरा प्रिय त्योहार होली पर निबंध | Holi Nibandh: इस पोस्ट में हम होली त्योहार पर एक बिस्तरित निबंध पढ़ेंगे।

होली परिचय



भारत त्योहारों का देश है और यहाँ की होली का त्योहार पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। होली का त्योहार हिन्दु धर्म के सभी त्योहारो में से एक प्रमुख त्योहार के रूप में मनाया जाता है। यह एक ऐसा त्योहार है जो सबको अपनी ओर आकर्षित करता है, जिसे सभी धर्म और समुदाय के लोग बहुत उत्साह से मनाते हैं। भारत के अलावा अन्य देशों और विदेशों में भी होली मनाई जाती है। यह रंगो के त्योहार के नाम से भी जाना जाता है।

Holi Nibandh Holi par nibandh

बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में होली का त्योहार मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि होली का त्योहार हजारों वर्षों से मनाया जा रहा है। यह खुशियां बांटने वाला त्योहार है, इस दिन सभी लोग एक दूसरे से गले मिलकर और रंग-गुलाल लगाकर खुशी-खुशी इस त्यौहार को मनाते हैं। इस त्योहार में ऐसी शक्ति है कि वर्षों पुरानी दुश्मनी भी इस दिन दोस्ती में बदल जाती है। इसीलिए होली को सौहार्द का त्यौहार भी कहा गया है। इस दिन बच्चों से लेकर बड़े तक सभी खूब मौज मस्ती करते हैं।

होली के समय बसंत ऋतु का आगमन होता है, खेतों में पीली सरसों लहराती है चारों ओर रंग बिरंगे मनमोहक फूल खिल जाते हैं मानो प्रकृति भी होली के इस त्योहार में सम्मिलित हो।

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होली कब मनाई जाती है

हिन्दू पंचांग के अनुसार, होली का त्योहार फागुन (मार्च) मास की पूर्णिमा को आता है। फागुन महीने में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को होलीका दहन किया जाता है, जबकि पूर्णिमा तिथि को रंगों के साथ होली मनाई जाती है। भारत में होली दो दिनों तक मनाई जाती है। पहले दिन लोग होलिका दहन करते हैं जिसमें लकड़ियाँ और गोबर के कंडे डालकर होलिका दहन किया जाता है और होली से संबंधित भजन गाते हैं। जबकि दूसरे दिन सभी लोग एक दूसरे को रंग-गुलाल लगाते हैं और अनेक तरह के पकवान का सेवन करते हैं।

होली का इतिहस

भारत के कई प्राचिन ग्रंथ जो २००० साल से भी पुराने हैं, उनमें होली का जिक्र मिलता है। भारत में शासन करने आये कई मुगल शासक भी होली से अत्यंत प्रभावित थे और होली मनाया करते थे। मुगल इतिहास के कुछ पन्नों में अकबर और जहांगीर जैसे मुगल शासकों द्वारा अपनी पत्नी के साथ होली खेलने का उल्लेख भी मिलता है। होली का रंग हमेशा से बिना भेद-भाव के हर समुदाय के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है।

भारत के कई पौराणिक मंदिरो के भिंतीचित्र और आकृति मे होली के सजीव चित्र देखें जा सकते हैं। पूराने जमाने की कई चित्रफलक, चित्र आकृतिया, भिंतीचित्र और लघुचित्रों मे होली का अद्भुत इतिहास पाया जाता है। देखा जाये तो होली का इतिहास अत्यंत प्राचीन है।

होली की कहानी- होली की कहानी बहुत ही रोचक है। पुरातन काल में हिरण्यकश्यप नामक एक राजा था जिसने कई वर्षों तक कठिन तपस्या कर भगवान ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और वर्दान में उसने यह मांगा कि “उसे ना दिन में ना रात में, ना देवता ना मनुष्य, ना ही कोई जानवर और ना ही किसी प्रकार के हथियार द्वारा कोई मार सके”। वरदान मिलने के बाद उसे अहंकार हो गया कि अब उसे कोई नहीं मार सकता और वह खुद को भगवान समझने लगा। हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु को अपना दुश्मन मानता था इसलिए उसने अपनी प्रजा से विष्णु की जगह अपनी पूजा करने का आदेश दिया और ना मानने पर अपनी प्रजा से क्रूरता पूर्ण व्यवहार करने लगा। भय वश कुछ लोग उसकी पूजा भी करने लगे। समय बीतने के साथ-साथ उसकी क्रूरता भी बढती गयी और उसके पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम प्रह्लाद रखा गया। प्रह्लाद बचपन से ही भगवान विष्णु का भक्त था। वह अपने पिता को भगवान नहीं मानता था। बहुत समझाने पर भी वह नहीं समझा तो हिरण्यकश्यप ने उसे मारने के कई उपाय किये, पर वह नहीं मरा। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान में मिला चादर उसे किसी भी प्रकार की आग से नहीं जला सकती थी इसलिए उसने अपने भाई का साथ देते हुए प्रह्लाद को लेकर जलती हुई आग में बैठ गई। प्रह्लाद यह देखकर घबरा गया और भगवान विष्णु की पूजा करने लगा। भगवान विष्णु ने प्रह्लाद की सुन ली और ऐसी कृपा हुई कि प्रहलाद को एक खरोच तक नहीं आई और होलिका जलकर भस्म हो गई। इसी के बाद से होली का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाने लगा।

Holi Festival Pictures

होली मनाने का तरीका

होली वाले दिन से ठीक एक दिन पहले होलिका दहन मनाया जाता है। इसके लिए लकड़ी, घास और गाय के गोबर से बने कंडे इकट्ठे करते है। संध्या के समय महिलाएं होली की पूजा करती हैं, लोटे से जल अर्पण करती हैं। फिर शुभ मुहूर्त देखकर होलिका दहन किया जाता है। जब आग की लपटे बढ़ने लगती हैं तो उसमे से प्रह्लाद के प्रतिक वाली लकड़ी को निकाल देते हैं और यह दर्शाते हैं कि बुराई पर हमेशा अच्छाई की जीत होती है। सभी लोग होलिका दहन के चारों ओर परिक्रमा करते हुए अपनी अच्छे स्वास्थ्य और खुशी की कामना करते हैं इसके साथ-साथ अपनी सभी बुराईयों को इसमे भस्म करते हैं। इस प्रकार से होलिका दहन का समापन करते हैं और अगले दिन रंगों का त्योहार होली मनाते हैं।

प्रियजन और पड़ोसी एक दूसरे को रंग लगाकर उत्सव की शुरुआत करते हैं। इस दिन बच्चे सबसे ज्यादा उत्साहित होते हैं और बुरा ना मानो होली है कहकर कोई रंगो भरी पिचकारी से तो कोई रंगो भरी गुब्बारे से सबको रंग लगाते हैं। इस दिन सभी आपस में एक दूसरे को रंग लगाते हैं और सब की शुभकामनाएं लेते हैं और सब को बधाई देते हैं। घरों में अच्छे-अच्छे पकवान बनते हैं। लोग एक दूसरे के घर जाकर गुलाल लगाते हैं और स्वादिष्ट पकवानों का लुफ्त उठाते हैं।

उपसंहार

होली के त्योहार को बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है। हमें इस त्यौहार से सीख लेते हुए अपनी बुराइयों को छोड़ते हुए अच्छाई को अपनाना चाहिए। अपने अहंकार को छोड़ देना चाहिए क्योंकि अहंकार हमारे सोचने समझने की शक्ति को बंद कर देता है। रंगो के इस त्योहार में लोग आपस के मत-भेद भूल कर नई जीवन की शुरुआत के साथ अपने अंदर नई ऊर्जा भी ले आते हैं। हिन्दुओं में सारा परिवार इस अनोखे पर्व का पूरे साल इंतजार करता है।

Composed by Atulya Priya.

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